यह चौपाई श्री रामचरितमानस के बालकाण्ड अध्याय से है।

मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥ राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा॥

यह चौपाई बालकाण्ड में संत-समाजरुपी तीर्थ के वर्णन में है।
भावार्थ: संतों का समाज आनंद और कल्याणमय है, जो जगत् में चलता-फिरता तीर्थराज (प्रयाग) है। जहाँ (उस संत समाज रूपी प्रयागराज में) राम भक्ति रूपी गंगाजी की धारा है और ब्रह्मविचार का प्रचार सरस्वतीजी हैं।
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